Atul from

Wednesday, 7 May 2025

हिंदी कविता

मेरा दर्द मुझे हराने लगा है 
चुपके से उछल के बाहर आने लगा है 
आंखों से अब रुकता नहीं
पानी बनाकर रक्त को बहाने लगा है 
जिल सी आंखों में फ़साके 
अब तो तूफान सा कहर ढाने लगा है 
नहीं बोल पाता की बस कर 
स्वास की घुटन सा शबद जाने लगा है 
लहू की उल्टी बनके यारा 
वो पसलियों से बाहर आने लगा है

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