चुपके से उछल के बाहर आने लगा है
आंखों से अब रुकता नहीं
पानी बनाकर रक्त को बहाने लगा है
जिल सी आंखों में फ़साके
अब तो तूफान सा कहर ढाने लगा है
नहीं बोल पाता की बस कर
स्वास की घुटन सा शबद जाने लगा है
लहू की उल्टी बनके यारा
वो पसलियों से बाहर आने लगा है
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