Atul bagada ( અતુલ બગડા ) "તથ્ય"
શક્યતાની હદ સુધી વિચારવા દે .......
Atul from
Wednesday, 31 October 2012
गालिब
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है?
हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।
हम हैं मुश्ताक़ और वो बेज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है।
जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है।
जान तुम पर निसार करता हूँ
मैंने नहीं जानता दुआ क्या है।
–गालीब
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